औद्योगिक क्षेत्र में जो गिने-चुने आदरपात्र नाम हैं उसमें इन्फोसिस के स्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति पहली पंक्ति में आते हैं। देश के श्रमिकों ने, विशेषकर युवा पीढ़ी को हर सप्ताह 70 घंटे काम करना चाहिए ऐसी उनकी सिफारिश काफी विवादास्पद रही है। एक मुलाकात में नारायणमूर्ति ने कहा कि भारत को अमेरिका और चीन की बराबरी करनी है तो श्रम की उत्पादकता बढ़नी चाहिए और युवाओं को कहना चाहिए कि हम सप्ताह में 70 घंटे काम करेंगे। दूसरे विश्व युद्ध में हारकर विवश हो गए जर्मनी और जापान को 20 सदी के उत्तरार्ध में जो नेत्रदीपक प्रगति हुई उसमें कामगारों के परिश्रम का योगदान रहा।
आलोचकों का कहना है कि भारत में सवाल काम के घंटों का नहीं है, काम की उत्पादकता का है। यूनो की संलग्न संस्था अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संस्था (इलो) के अनुमान के अनुसार 2021 में भारत में श्रम की उत्पादकता प्रति घंटे 8.47 डॉलर थी, जो अमेरिका में 70.68 डॉलर और लक्जमबर्ग 136.45 डॉलर थी। भारत के लोग साप्ताह में औसतन 48 घंटे काम करते ही हैं। काम के घंटों को बढ़ाने से उत्पादन की समस्या हल होने वाली नहीं है। उल्टे श्रमिक वर्ग में महिलाओं की संख्या घटेगी क्योंकि उनके लिए परिवार, काम और जीवन का संतुलन बनाए रखना अधिक कठिन होगा। आधुनिक अनुभव ऐसा भी है कि, कुछ मामलों में काम के घंटे घटाने से और काम में सहूलियत देने से उत्पादकता बढ़ती है।