अनेक प्रकार की अनिश्चितताओं से जूझ रही दुनिया में देश के विकास की गाड़ी को पटरी पर बनाए रखने के लिए रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति को समय पर और उचित तरीके से सहज बनाया है। उसने प्रमुख ब्याज दर को 0.25 प्रतिशत घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया है। मौद्रिक नीति का रुख `तटस्थ' से बदलकर `अनुकूल' कर दिया गया है। इसका अर्थ यह है कि किसी असाधारण उथल-पुथल को छोड़ दें तो अब रेपो रेट या तो घटेगी या यथावत रहेगी। आगे और कटौती की आशा की जा सकती है। कमरतोड़ मासिक किश्तों से जूझ रहे मध्यम वर्ग के लिए यह राहतभरी खबर है। गवर्नर संजय मल्होत्रा ने भरोसा दिलाया है कि वित्तीय प्रणाली में पर्याप्त तरलता बनाए रखी जाएगी और लगभग एक प्रतिशत डिपॉजिट किसी भी समय नकद स्वरूप में उपलब्ध रहेगी।
देशी और विदेशी-दोनों तरह के कारकों ने
मौद्रिक नीति को सहज और अनुकूल बनाए रखने की प्रेरणा दी है। घरेलू स्तर पर उपभोक्ता
महंगाई धीरे-धीरे काबू में आ रही है। फरवरी में यह घटकर 3.61 प्रतिशत रह गई। अनाज के
दाम गिर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें 60 डॉलर के आसपास आ
गई हैं। वैश्विक मंदी की आशंका के चलते तेल की मांग घटने का डर तेल उत्पादक देशों को
सता रहा है। बावजूद इसके ओपेक और उसके सहयोगी देशों ने उत्पादन बढ़ाने की घोषणा की
है। कुल मिलाकर तेल बाज़ार गिरावट की दिशा में जा रहा है। रिजर्व बैंक ने 2025-26 के
लिए उपभोक्ता महंगाई का अनुमान 4.2 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया है।
दूसरी ओर, आर्थिक विकास की संभावनाएं वैश्विक
अनिश्चितताओं के कारण धुंधली पड़ गई हैं। गवर्नर मल्होत्रा ने कहा कि हमें घरेलू की
तुलना में बाहरी कारकों की अधिक चिंता है। यह चिंता दो प्रकार की है। पहली, अमेरिका
के राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा छेड़े गए टैरिफ युद्ध और चीन तथा यूरोपीय यूनियन की प्रतिक्रिया
से सभी देशों में वस्तुएं महंगी होने, अंतरराष्ट्रीय व्यापार घटने और विकास दर मंद
पड़ने की आशंका उत्पन्न हो गई है। ट्रंप ने चीन पर शुल्क बढ़ाकर 125 प्रतिशत कर दिया
है और बाकी देशों पर 90 दिनों तक पारस्परिक शुल्क को स्थगित करते हुए केवल 10 प्रतिशत
बेसिक शुल्क लगाने की घोषणा करके तात्कालिक राहत तो दी है, परंतु नीति निर्माताओं,
निर्यातकों और निवेशकों को यह चिंता लगातार बनी हुई है कि कभी भी कुछ भी हो सकता है।
इसका असर आर्थिक गतिविधियों पर पड़ेगा ही। रिजर्व बैंक ने 2025-26 के लिए विकास दर
का अनुमान 6.7 प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है।
दूसरी चिंता मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव, आयातित
महंगाई और पूंजी प्रवाह से संबंधित है। ऊंचे शुल्कों के कारण यदि अमेरिका में महंगाई
बढ़ती है, तो फेडरल रिजर्व के लिए ब्याज दरें घटाना कठिन हो जाएगा। यदि अमेरिका में
ब्याज दरें ऊंची रहती हैं, तो डॉलर मजबूत होता है, रुपया कमजोर पड़ता है, आयात महंगा
होता है और भारत में महंगाई बढ़ती है। रिजर्व बैंक को भी दरें घटाने से पहले पूंजी
प्रवाह पर असर का मूल्यांकन करना पड़ता है। कुल मिलाकर देखा जाए, तो घरेलू की तुलना
में अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है। रिजर्व बैंक ने अपनी ओर से
भारतीय निवेशकों, निर्यातकों और नीति-निर्माताओं के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाने का
प्रयास किया है। लेकिन शेयर बाजार को उत्साह में आकर यह नहीं मान लेना चाहिए कि अब
लगातार सस्ती पूंजी और दरों में कटौती मिलती ही रहेगी। ऐसा सोचना भूल साबित हो सकता
है।