कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहाण ने तिलहन के लिए उनकी
भावांतर भुगतान योजना (प्राइस डेफीसिट पेमेंट स्कीम) राष्ट्रीय स्तर पर पुनजीर्वित
की है। चौहाण मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने 2017-18 में सोयाबीन और अन्य
8 फसलों के लिए यह योजना पेश की थी। लेकिन मार्च, 2018 में एकाएक स्थगित कर दी। योजना
के पीछे का विचार यह है कि किसान इसके उत्पाद के समर्थन भाव के नीचे भाव पर बेचना पड़े
तो यह भावांतर सरकार इसे नकद से भरपाई करे। इसका लाभ यह है कि सरकार को सभी उत्पाद
समर्थन भाव पर खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए वह खरीदी, संग्रह और परिवहन खर्च
बचा सकती है, जबकि किसानों को उनके उत्पादन के लिए सरकार द्वारा घोषित किए गए न्यूनतम
भाव मिलता रहे। विचार उत्तम है, लेकिन लफंगे व्यापारी, चालाक किसान और प्रशासनिक तंत्र
इसकी धज्जी उड़ा डालते हø। हुआ यह कि जिस फसल के लिए योजना घोषित हुई है उसका भाव व्यापारियों
ने तोड़ दिया। वे किसानों को कहते कि हम तो इतना ही देंगे, बाकी सरकार से ले लो। अनेक
किसान बाजार में हल्का माल लेते (जो नीचे भाव पर ही बिकता है) और भावांतर सरकार से
वसूल करते। ऐसा कितने हद तक होता इसे जानने का कोई साधन नहीं, लेकिन ऐसे समाचारों के
कारण सरकार ने इस योजना से रुचि खो दी और इसे बंद करना पड़ा। अब जब राष्ट्रीय स्तर
पर इसे वापस लाया गया है तब इसकी पहले की विफलता से सबक लेकर इसकी अमल में रह गयी कमी
को सुधारना जरूरी है। इस योजना में नाम दर्ज कराने के लिए प्रत्येक किसान को प्रत्येक
फसल के लिए अलग से पंजीयन कराना पड़ता है। सरकारी अधिकारी प्रत्येक फसल की बोआई के
क्षेत्रफल की माप करके किसान को इसके पैदावार का जो भाव मिलेगा इसका समर्थन भाव अथवा
औसतन मासिक भाव के बीच का अंतर (जो कम हो वह) इसे भावांतर के रूप में भुगतान करते।
इस तरह किसान के हाथ में पैसा आने में डेढ़ महीने जितना समय लग जाता। अब आधुनिक टेक्नोलाजी
के कारण पंजीयन की प्रक्रिया सरल बनाई जा सकती है। मासिक के बदले साप्ताहिक भाव का
औसत किया जाए तो भुगतान में काफी तेजी होगी। डीबीटी टेक्नोलाजी के कारण किसानों को
तेजी से भुगतान किया जा सकता है और इस योजना का दायरा भी बढ़ाया जा सकता है। भावांतर
भुगतान योजना अब प्रत्येक सीजन के (वर्ष का नहीं) चार महीने अमल में रहेगा। इसलिए किसान
थकहार कर माल फूंकना न पड़े वह अतिरिक्त लाभ है। सामने पक्ष नए सरकार को किसानों द्वारा
व्यापारी के बेचे गए माल की गुणवत्ता जांचने के विश्वासपात्र प्रक्रिया की चुनौती झेलाता
पडता है। भावांतर योजना ई-नाम के साथ जोड़ लिया जाए तो किसानों को अधिक लाभ मिल सकता
है। जिसके लिए समर्थन भाव घोषित न हो ऐसे उत्पादों में, बागायती फसलों में भी इसे लागू
किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए सरकार द्वारा प्रत्येक चीज का प्रामाणित भाव निश्चित
करना होगा, जो एक जोखिमी कवायद् है।