• शनिवार, 27 जुलाई, 2024

घाटा नियंत्रण में रहेगा?

केद्र सरकार की वित्तीय स्थिति अभी तक संतोषजन नहीं रही है। कराधान की आवक अपेक्षा की तुलना में अच्छी है, जबकि खर्च अपेक्षानुसार है। वर्ष के प्रथमार्ध में (अप्रैल-सितंबर में) कराधान की शुद्ध आय में वर्षानुवर्ष 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि बजट का अनुमान 11 प्रतिशत का है। विनिवेश की आय इस वर्ष भी लक्ष्य की तुलना में कम रही तो आश्चर्य नहीं। लेकिन सरकारी बøकों ने अच्छा लांभाश दिया है और रिजर्व बैंक ने 87000 करोड़ रुपए मुनाफे के रूप में केद्र को दिया है। इसलिए यह घाटा लगभग पूरा होने की आशा रखी जा सकती है। अप्रैल-सितंबर के दौरान केद्र की कुल आय (14.17 लाख करोड़ रुपए) वार्षिक अनुमान का 52 प्रतिशत है, जबकि कुल खर्च (21.19 लाख करोड़ रुपए) वार्षिक अनुमान के अनुसार 47.8 प्रतिशत है। आय के सामने खर्च बराबर करने के बाद बजट घाटा 7.02 लाख करेड़ रुपए का है जो वार्षिक अनुमान का 39.3 प्रतिशत जितना होने जा रहा है।

त्रुटि बताने वालों का कहना है कि यह औसत गत वर्ष के 37.3 प्रतिशत से अधिक है। लेकिन खर्च के विगत की जांच करें तो इस आलोचना की खामी समाप्त हो जाती है। केद्र सरकार की नीति विकास खर्च पहले करने की है। इस अनुसार विकास खर्च में वर्षानुवर्ष 43 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि बजट का अनुमान 36 प्रतिशत का है। निजी पूंजी निवेश निष्प्राण है तो सार्वजनिक पूंजी निवेश द्वारा विकास की गाड़ी को पटरी पर रखने की जिम्मेदारी केद्र सरकार ने उठा ली है, जो प्रशंसनीय है। राजस्व घाटा वार्षिक अनुमान का 26.6 प्रतिशत है जो गत 31.4 प्रतिशत था।

आनंद की बात यह है कि राज्य सरकारें भे विकास पर अधिक खर्च कर रही हैं । केद्र सरकार ने विकास खर्च के लिए कुल 10 लाख करोड़ रुपए आवंटित किया है, उसमें से 13 प्रतिशत राज्य सरकारों के लिए है। राज्यों की केद्रीय सहायता (जो आर्थिक सुधार के साथ जुड़ी होती है) और अपनी आय से विकास की आवश्यकता का अच्छा प्रतिभाव दे रही है। राज्यों का कुल बजट का 93 प्रतिशत हिस्सा रखने वाली 23 राज्य सरकारों में अप्रैल-सितंबर के दौरान उनके विकास खर्च में 53 प्रतिशत की वृद्धि की है। वर्ष के प्रथमार्ध में केद्र और राज्यों का कुल विकास खर्च 7.54 लाख करोड़ रुपए था। यह बरकरार रहा तो इस वर्ष विकास खर्च का 5 प्रतिशत पार कर जाएगी।