• गुरुवार, 02 मई, 2024

कपास पर 11 प्र. श. आयात शुल्क हटाना जरूरी   

रमाकांत चौधरी 

नई दिल्ली । कपास आधारित भारतीय कपड़ा उद्योग को कपास की कीमतों में उच्च अस्थिरता और घरेलू कपास की आरामदायक उपलब्धता के बावजूद कपास पर 11 प्रतिशत आयात शुल्क के कारण लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।ऐसे में रेडीमेड वस्त्रों सहित कुल सूती कपड़ा निर्यात में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 2022-213 में 23 प्रतिशत और अप्रैल-जून 2023 की अवधि में 18 प्रतिशत की गिरावट आई है।वहीं 2022-23 में सूती धागे का निर्यात एक साल पहले की तुलना में 50 प्रतिशत रह गया है।जिससे कपड़ा क्षेत्र में उत्पादन रुक गया है और इसके मूल्य श्रंखला में 30 प्रतिशत तक बेरोजगारी बढ गई है।हालांकि केद्रीय कपड़ा मंत्री श्री पीयूष गोयल ने एक कपड़ा सलाहकार समूह का गठन कर रखा है और कपास की कीमत को स्थिर करने और वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढाने के लिए विभिन्न सुधारात्मक उपाय कर रहे ह।ऐसे में रेमिशन ऑफ डय़ूटी ओर टेक्सेस ऑन एक्सपोर्ट प्रोडक्ट (आरओटीडीईपी) स्कीम जैसे अनूठे निर्यात लाभ जो कि सभी अवरुद्व और एम्बेडेड शुल्कों को वापस करते ह जिसके शर्त़ों में सुधार करते ह और मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) वायदा कारोबार में कपास अनुबंध की शर्त़ें और सट्टेबाजी पर अंकुश लगाना और कपास उत्पादन और उत्पादकता बढाने के लिए एक मास्टर प्लान लागू करने के लिए केद्रीय कृषि मंत्रालय और केद्रीय कपड़ा मंत्रालय की संयुक्त पहल द्वारा की गई कुछ प्रमुख पहल ह।जिसमें कपास पर 11 प्रतिशत आयात शुल्क घरेलू कपास व्यापार को आयात समतार मूल्य निर्धारण अपनाने की सुविधा प्रदान करता है और अक्सर कपास स्टॉक और फसल के आकार को कम करके कपास बाजार में घटबराहट पैदा करता है।वहीं केद्रीय कपास आयुक्त की अध्यक्षता में कार्यरत कपास उत्पादन और उपभोग समिति (सीओसीपीसी) जिसमें कपास मूल्य श्रृंखला के सभी हितधारक शामिल ह।जिसमें कपास फसल के आकार,आयात,निर्यात,खपत,स्टॉक आदि का अनुमान लगा रही है।वहीं सीओसीपीसी का अनुमान है कि कपास की कीमत की प्रवृत्ति और बदले में सूती कपड़ा मूल्य श्रृंखला के प्रदर्शन को प्रभावित कर रहा है।